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sandeeep kajale

Tragedy

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sandeeep kajale

Tragedy

ऐ इश्क़ कही ले चल

ऐ इश्क़ कही ले चल

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मन का परिंदा पिंजड़ा तोड़ के उड़ा

एक दिल दूसरे दिल से जुड़ा

तू शाम बन के अब मुझे में ढल

ऐ इश्क़ कहीं ले चल।


कैसी ये अनजान जुदाई

फिर दुःख की घटा छाई

किया तूने क्यों ऐसा छल

ऐ इश्क़ कहीं ले चल।


बढ़ती रिश्तों की ये उलझन

ना मिलती कोई सुलझन

तेरे विरहन में रही हूँ जल

ऐ इश्क़ कहीं ले चल।


इस दिल को कैसे समझाऊं

दर्द की लौ कैसे बुझाऊँ

मेरी ज़िन्दगी तू यूँ ना बदल

ऐ इश्क़ कहीं ले चल।


कैसी ये अनजान तन्हाई

फिर दुःख की घटा छाई

किया तूने ऐसा मुझसे चल

ऐ इश्क़ कहीं ले चल।



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