ऐ इश्क़ कही ले चल
ऐ इश्क़ कही ले चल
मन का परिंदा पिंजड़ा तोड़ के उड़ा
एक दिल दूसरे दिल से जुड़ा
तू शाम बन के अब मुझे में ढल
ऐ इश्क़ कहीं ले चल।
कैसी ये अनजान जुदाई
फिर दुःख की घटा छाई
किया तूने क्यों ऐसा छल
ऐ इश्क़ कहीं ले चल।
बढ़ती रिश्तों की ये उलझन
ना मिलती कोई सुलझन
तेरे विरहन में रही हूँ जल
ऐ इश्क़ कहीं ले चल।
इस दिल को कैसे समझाऊं
दर्द की लौ कैसे बुझाऊँ
मेरी ज़िन्दगी तू यूँ ना बदल
ऐ इश्क़ कहीं ले चल।
कैसी ये अनजान तन्हाई
फिर दुःख की घटा छाई
किया तूने ऐसा मुझसे चल
ऐ इश्क़ कहीं ले चल।