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नन्द कुमार शुक्ल

Romance

4  

नन्द कुमार शुक्ल

Romance

ऐ हवा बेखबर

ऐ हवा बेखबर

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ऐ हवा बेखबर तू चली है कहां, 

चल दिशा मे उसी दिलरूबा है जहां ।

पास जा कर के कह उससे मेरा बयां ,

है तेरीयाद मे मर रहा एक जवांं ।

तेरी अद्भुत अदा ने है जादू किया, 

देखे बिन तुमको माने न मेरा हिया ।

भूख और प्यास अब तो है लगती नही, 

नीद ना रात को चैन दिन को नही ।

मेरी प्रेमाग्नि लेकर के जा तू हवा, 

उसके उर मे जला प्रेम का एक दिया ।

मेरी आहों से मेरा प्रकट भाव कर, 

फिर भी माने न समझे जो वो बेखबर ।

मेरी आहो की आंधी तू बनकर हवा ,

लाके मेरे प्रणय का वो जलता दिया ।

भस्म जीवन को मेरे तू करिए यहां, 

ऐ हवा बेखबर तू चली है कहां ।



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