अहंकार
अहंकार
अहंकार की जड़े ना अपने अंदर कभी पनपने देना तुम
अहंकार तलवार है ऐसी जो तुमको कतरा कतरा कटेगी
रहकर तुम्हारे अंदर वह तुम को ही अंदर से मारेगी
इसीलिए मैं कहती हूं 'अहंकार' को अपने अंदर, कभी ना आने देना तुम....!!
अहंकार जब हो जाए हावी, तब मनुष्य नहीं वो रह जाता है
उसको लगता जैसे दुनिया उसके कदमों पर आके रुकती हैं
एहसास नहीं रहता कुछ भी, सही गलत सब भूल जाता है
हर बात सही लगे उसे, अपनी पर दूजे की ना भाती है....!!
अहंकार जब सिर उठाए खड़ा हो जाए, मनुष्य वही गिर जाता है
अहंकार जन्म देता है क्रोध को, तब बुद्धि में सेंध लगाता है
ह्रदय में ज्वाला क्रोध की जलती तब बुद्धि को कुछ समझ ना आता है
अहंकार वो विष है ऐसा जो जीवन को जहर से भरता है....!!
अहंकार जीवन में देखो, क्या क्या रंग दिखाता है
सारे रिश्तों को पल भर में अपनों से दूर कर जाता है
झुकने को तैयार ना होता अपनी अकड़ दिखाता है
अहंकार की जड़े जब फैले तब दोस्त भी दुश्मन बन जाता है....!!