अग्नि परीक्षा कब तक
अग्नि परीक्षा कब तक
पहले ही दिन उसे सताया गया था
उसे दहेज कम लाने के लिए
जिम्मेवार ठहराया गया था
मूक थी, स्तब्ध थी
ठूठ सी बनी निभाने लगी उस रिश्ते को
जिसकी बुनियाद ही कमज़ोरी में ढली थी
सुंदर सी परी आई उनके घर
सोचा रंगमय सा बन जायेगा अब जीवन
कुछ बेहतर और बेहतर कोशिश करने लगी
नौकरी पेशा होकर भी
सारी ज़िम्मेदारियां खुद ओढ़ने लगी
मगर ये क्या ?
एक और भूचाल आ गया
अब आरोप उसके चरित्र पर भी आ गया
नन्ही परी रो रही थी
रात के अँधेरे में निकालने पर घर से
पोंछ रही थी माँ के आँसू
अब उसकी पवित्रता का इम्तिहाँ था
उपहास न उड़ने दूंगी अब
अपमान न होने दूंगी अब
वेदना को और न सहूंगी अब
उसने साहस जुटाया
इन दहेज लोभियों को
सलाखों के पीछे पहुंचाया
वह खुश तो थी
आत्मनिर्भर भी थी
पर मजबूर थी यह सोचने के लिए कि आखिर
नारी की यह अग्नि परीक्षा कब तक।
