अधूरा घर
अधूरा घर
जहाँ होती खड़ी,
मेरे सपनों की इमारत,
वह सुनसान पड़ा है।
जहाँ बसी होती, मेरी बस्ती,
वह श्मसान बना है।
खरीदा घर, मैने पैसे देकर,
मेरा घर गायब है,
पर उनका बंगला,
आलिशान बना है।
एक—एक पैसा जोड़,
उन्हे दिया,
उन पैसो से अब, वो मेरा
भगवान बना है।
लौटा दो मेरी अमानत,
बाँट औ पा, तू भी खुशियाँ
जिना है सिर्फ कुछ दिन
मिट्टी का तू इंसान बना है।
बना, बसा और आगे बढ,
सच, ईमान की उँचाई चढ़,
छोड़ राह बुराई का,
क्यूँ ऐसे नादान बना है?
ना मेरे सपनों का घर,
ना पैसा
ना ईमान, ना खुशियाँ
सब कुछ लुटा इन लूटेरो ने
लूटमारो का बाजार लगा है
जहाँ होती खड़ी ,
मेरे सपनों की इमारत,
वह सुनसान पड़ा है।
