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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

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अधीर ना हो मन मेरे

अधीर ना हो मन मेरे

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अधीर ना हो मन मेरे,

अपनों के यूं वियोग में,

जो आया उसे एक दिन जाना है,

जिसने धरा में जन्म लिया,


फिर मिट्टी में ही मिल जाना है।

ये प्रकृति का है काल चक्र,

इसे नित यूं चलते रहना है,

इस जन्म मरण की चक्की में,

सबको एक दिन पिस जाना है।


यह अटल सत्य, चराचर सृष्टि का,

जो कर्म किया फल पाना है,

दुख सुख में चित की वृत्ति को धारण,

फिर उस परमब्रह्म में मिल जाना है।


तू धीर रख कर्म के पथ पर,

अपने अस्तित्व को पहचान कर,

क्रोध लोभ लालच वासना को त्याग,

मानव जीवन को नित साकार कर।


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