अद्भुत अंबुज
अद्भुत अंबुज
भोर की लालिमा में हँसता हुआ सूरज,
पक्षीयों के कलरव से गुंजती हुई घाटियाँ,
पेड़ों की डालियों में धूप से चमकते हुई पत्ते।
सुनहरी घास पर बिखरी हुईं दूब की बूदें।
गुलामी कमल के पुष्प सरोवर में खिलते हुए,
गोलाकार तश्तरीनुमा पत्तों के बीच,
अलौकिक अद्भुत अविस्मरणीय ये अंबुज,
आकर्षित करते भोंरों को मदहोश सुगंध से,
चौड़ी पंखुड़ियां अति मनोहर,
मधुमक्खियां रसपान को लालायित होती।
अपलक निहारता जग सौंदर्य को तेरे,
पर जो सीख सिखाता तू पुष्कर,
वही जीवन का है मूल मंत्र।
परिस्थितियों के अभाव में भाग्य को कोसना,
है बहाना मात्र क्योंकि,
कीचड़ में भी खिल जाता है
लक्ष्मी जी का दुलारा,
फिर भी कितना निर्मल
इतना कोमल कितना प्यारा।
