अचरज
अचरज
शहर में दरबदर रहकर ,
शहर की सलवटों को सुधारता रहा
आज झोपड़ी में है
हर तह को संवार कर
फिर से गाँव बना रहा
मजदूर है साहब,
मेहनत के जाले
बुन बुन कर,
कुछ अचरज भरा ही कर रहा।
शहर में दरबदर रहकर ,
शहर की सलवटों को सुधारता रहा
आज झोपड़ी में है
हर तह को संवार कर
फिर से गाँव बना रहा
मजदूर है साहब,
मेहनत के जाले
बुन बुन कर,
कुछ अचरज भरा ही कर रहा।