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Nalanda Satish

Tragedy

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Nalanda Satish

Tragedy

अबोर्शन

अबोर्शन

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छुटकारा अनचाहे गर्भ से

सिसकती माँ 

तड़पता बच्चा 

बिन ब्याही माँ की कोख 

शर्म और लाचारी का पर्दा ओढ़कर 

दवाखाने की सीढ़ियाँ चढ़ती

कभी मजबुरी में 

कभी लोक लाज की इज्जत की खातिर।

 

दो जान की कीमत नगण्य 

रीतिरिवाजों के जाल में फंसी 

नन्ही जान को मारने को तैयार 

नैतिकता और अनैतिकता 

के मायने शुन्य हो जाते हैं 


समाज के सामने भ्रुण 

धब्बा है सुशिक्षीत समाज के चेहरे पर 

मौलिक अधिकार बन्द किताबो मे

मकड़ी का भोजन बन जाते हैं 

दर्द का एहसास सफेदपोश 

बनकर चलता है नुक्कड़ नुक्कड़ 


सभ्यता को बचाते हुए 

इंसानियत हो जाती है शर्मसार 

कभी लड़की होने के बहाने से 

कभी सिन्दूर के बहाने से 

कभी प्रेमवासना मे डुबोने से

करनी पड़ती हैं भृण हत्या 

कभी जोर जबरदस्ती से

कभी दबाव डालकर 


अपने खून का खून करना

नहीं होता है आसान 

दिलो-दिमाग में मचा रहता है 

घमासान 

आज भी यौन शिक्षा पर बात 

होती नहीं

शर्म की बात है बेटी बचाओ 

बेटी पढ़ाओ का नारा 


भीड़ में दुबक कर बैठ गया 

सरेआम कत्ल हो रहा है 

कभी कानूनी तरीके से तो

कभी गैर-कानूनी तरीके से 

नारी का पूर्ण सशक्तिकरण 

सिर्फ़ और सिर्फ़ एक भुलावा है।


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