अबला नहीं नारी हूं मैं
अबला नहीं नारी हूं मैं


नारी हूं मैं नारी हूं,
ना अबला ना बेचारी हूं।
मैं ही क्यों घूंघट डालूँ ,
क्यों मैं सब कुछ संभाल हूं।
क्या मेरी है सिर्फ जिम्मेदारी,
सब देखो बारी बारी।
मां हूं, पत्नी हूं, बेटी हूं,
पर सबसे पहले हूं नारी।
एक बेहतर अच्छी जीवन की,
मैं भी तो हूं अधिकारी।
सारे घर को सजाऊंगी मैं,
पर अपना भी सिंगार करूंगी।
तुम थोड़ा प्यार दोगे अगर तो,
सारे जीवन तुम्हें प्यार करूंगी।
इस घर को अपना समझूंगी,
पर कहना ना पराया तुम।
मैं बन चलूंगी परछाईं,
बनकर रहना मेरा साया तुम।
ना सोना ना चांदी ना जेवरात चाहिए,
मुझ को तो हर पल तुम्हारा साथ चाहिए।
थोड़ा सा घर का सामान चाहिए,
मुझ को तो बस खुला आसमान चाहिए।