अब शेष कुछ बचा नहीं,
अब शेष कुछ बचा नहीं,
अब शेष कुछ बचा नहीं,
सब कुछ है, बिखर गया।
जाने क्यों? कबूल होती कुछ दुआ नहीं,
ऐसा हमने क्या अनर्थ कर दिया।
इंसानों से ही तो होती है गलतियां,
सामझाने का एक भी मौका ना मिले
तो खत्म हो जाती है एक ही पल में सारी अच्छाइयां।
आंखों देखा हाल सुनाते सब,
नहीं मापते अंदर की गहराइयां ।
अंदर के बिखरे सैलाब को किसी ने आजतक देखा नहीं,
तो कैसे जानेगा ! कोई दर्द कितना हुआ था ।
जब टूट रही थी किसी ने गले लगाया नहीं ,
टूटा हुआ दिल कहता है अब शेष कुछ बचा नहीं ।