अब रोज़ उदास रहने लगा हूँ
अब रोज़ उदास रहने लगा हूँ


गमों को अपने मुसलसल छुपाने लगा हूँ मैं !
दरिया गमो का अपने अंदर बहाने लगा हूँ मैं !
मिलता नहीं किसी से बंद कमरे में दिन निकालता हूँ !
क्योंकि अब रोज़ उदास रहने लगा हूँ मैं !
दिन भी रात सा लगने लगता है अंधरे में रहने लगा हूँ मैं !
उजाला छोड़ अंधरे में रहने लगा हूँ मैं !
लग रहा है वास्ता हो गया है मेरा अंधरे से !
अब रोज़ उदास रहने लगा हूँ मैं !
सब कुछ बेकार है मेरे लिए इसी को
सच मान इसी में रहने लगा हूँ मैं !
व्यर्थ है जीवन मेरा नाकामयाबी मिल रही है मुझे हर बार !
बुरे ख्याल सोचकर अब रोज़ उदास रहने लगा हूँ मैं !
कर्म करें जा रहा हूँ फल कुछ मिल नहीं रहा
प्रयास अपने व्यर्थ मानने लगा हूँ मैं !
नाकामयाबी से जैसे रिश्ता हो गया है ऐसा मानने लगा हूँ मैं !
अवसाद मैं हूँ लगाता है या जानेवाला हूँ मैं !
अब रोज़ उदास रहने लगा हूँ मैं !