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Parul Chaturvedi

Inspirational

3.7  

Parul Chaturvedi

Inspirational

अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ

अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ

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खोल के मनचाही किताब के पन्ने
पढ़ते-पढ़ते ही सोने लगा हूँ
शायद लोग सही कहते हैं
अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ

पहले सी फुर्ती नहीं बदन में
दो कदम चलने से थकने लगा हूँ
गिनी हुई साँसें हैं बाकी
एक-एक को खींच के लेने लगा हूँ

आँखों से कम हो गया है दिखना
कुछ ऊँचा भी अब सुनने लगा हूँ
भूख नहीं लगती अब उतनी
ज़िंदा रहने को बस दाने चुगने लगा हूँ

पहले जिन बातों पे गुस्सा आता था
अब उनको नज़रअंदाज करने लगा हूँ
बड़े बड़े बच्चों के आगे
अपने ही गुस्से से डरने लगा हूँ

प्यार तो पहले भी करता था सबसे
अब ज़ाहिर भी करने लगा हूँ
वक्त मिले न मिले कहने का
इसलिये अब सब कुछ कहने लगा हूँ

मन में जितने उद्गार भरे थे
आँखों से खाली करने लगा हूँ
फ़िर-फ़िर जो आँसू आते हैं
उन्हें आँखों की ख़राबी कहने लगा हूँ

शरीर साथ नहीं देता अब
मनोबल से उसको ढोने लगा हूँ
पता नहीं लगने देता पर
अंदर से तो दुर्बल होने लगा हूँ

उम्र जो ढलने लगी है मेरी
गलतियाँ अपनी गिनने लगा हूँ
माफी तो माँग नहीं सकता पर
उन पर पछतावा करने लगा हूँ

सब अपने अब मेरे पास रहें
ऐसी कामना करने लगा हूँ
वक्त अब मेरे पास जो कम है
देख-देख के सबको जी भरने लगा हूँ

जाना तो इक दिन है सबको, पर
बिस्तर पे पड़ने से डरने लगा हूँ
चलते चलते चला जाऊँ बस
यही प्रार्थना करने लगा हूँ

खोल के मनचाही किताब के पन्ने
पढ़ते-पढ़ते ही सोने लगा हूँ
शायद लोग सही कहते हैं
अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ
अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ ||


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