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देवकी की व्यथा

देवकी की व्यथा

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देवकी के सूने नैनों में फिर उठी हूक कान्हा के दरस की 

एक बार दिखला दे कोई, झलक एक, हर बीते बरस की

 

पहली उसकी मुस्कान थी कैसी, कैसे आँखों में झलकी थी

खिलखिला के वो हँसा होगा, या हँसी लभों पे हल्की थी

 

घुटनों पे कैसे चलता होगा, कभी डाली मुख में मिट्टी होगी

और उठा कदम जो पहला होगा, लहर ख़ुशी की दौड़ी होगी

 

ठुमक-ठुमक चलता होगा, पावों में पायल बाजी होगी

मनमोहक कितना वो दृश्य होगा, नज़र तो किसी ने उतारी होगी !

 

यशोदा को जब 'माँ' बोला होगा, कितनी प्रसन्न वो हुई होगी

बाहों में भर के कान्हा को, कुछ देर तो वो रोई होगी

 

सुना है रूप है अलौकिक उसका, छवि उसमें किसकी होगी

वसुदेव के जैसा दिखता होगा, या छाया मेरी झलकी होगी

 

कहते हैं नटखट बड़ा है वो, तंग यशोदा जो आई होगी

कुछ दंड दिया होगा उसको, या फिर छड़ी उठाई होगी

 

मुख पे माखन लगे हुऐ , कोई गोपी जो पकड़ लाई होगी

गुस्सा आया होगा उस पर, या मंद हँसी लभ पे आई होगी

 

पहली बार जो उसने मुख से, बंसी पे तान सुनाई होगी

क्या आनंद मिला होगा, वो तो फूली न समाई होगी

 

इन्हीं कल्पनाओं के बल पर, ये माँ उसकी जीती होगी

कभी तो उसको पता चलेगा कि, क्या मुझ पर बीती होगी

 

मेरे हिस्से में ये सब ना था, यशोदा ये तपस्या तेरी थी

जो मिला तुझे कान्हा का सुख, और ये तड़प ही किस्मत मेरी थी

 

जीती हूँ इसी आशंका में, कभी ये बात जो उस तक जाऐगी

कि जन्म दिया था मैंने उसको, तब क्या उसे याद मेरी भी आऐगी?

 

आऐगा जिस दिन सामने मेरे, बेला ही जाने कैसी होगी

छाती से लगा के उसको अपनी, मुझे प्राप्ति मोक्ष जैसी होगी ।।

 


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