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बेटी- माँ का दूसरा रुप

बेटी- माँ का दूसरा रुप

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नन्हीं-नन्हीं इन आँखों में

इतना स्नेह कहाँ से लाई  है

मिल न सका जो जी भर मुझको

माँ का वो प्यार देने आई  है

 

छोटे से कोमल हाथों को

जब गालों पे मेरे फिराती है

वो स्पर्श तेरा यूँ लगता है

जैसे माँ दुलराती है

 

प्यार भरे नैनों से जब

मेरी ओर देख मुस्काती है

माँ की आँखों में देखे उसी स्नेह की

याद मुझे आ जाती है

 

लड़ती है जो तेरी बात न मानूँ

गुस्से से यूँ चिल्लाती है

पड़ती थी जो पहले भी मुझको

मीठी सी वो डाँट याद दिलाती है

 

गले में बहियाँ डाल मेरे

जब सोने को तू आती है

जो सुनती थी मैं भारी पलकों से

वही लोरी मुख पे आ जाती है

 

उफ़ भी निकले गर मुँह से मेरे

माँ क्या हुआ, पूछने आती है

वैसे ही जैसे गिरने पे बच्चों के

माँ उठा गले से लगाती है

 

माँ ये दो, माँ वो दो करके

अपनी सेवा करवाती है

जो रह गई कसर सेवा में माँ की

वो मौक़ा फिर दिलवाती है

 

अभी तो छोटी सी बच्ची है

फिर भी विश्वास दिलाती है

सच कहते हैं लोग, बड़ी हो

बेटी माँ बन जाती है

 

हर बात तेरी कहती है मुझसे

तू उनकी परछाई  है

अधूरी थी जिस कारण मैं

मुझे पूरा करने आई  है

मुझे पूरा करने आई  है.

 

 


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