आवाज़ उठाना जरुरी है
आवाज़ उठाना जरुरी है
दोस्ती का दर्ज़ा दिया था तुझे उसने,
इस आस में की तू भी दोस्त ही मानेगा उसको,
कौन भला समझ सकता है,
चेहरे के पीछे का इंसान
भूल तो ऊपर वाला भी कर बैठता,
वो तो ठहरी फिर नादान।
वो तो यूँ ही बेपरवाह हँस दिया करती थी,
तेरी हर बात को समझती थी,
साथ बैठकर मस्ती भी किया करती थी,
क्यूँकि वो तुझे एक दोस्त जो मानती थी।
हाँ एक भूल हुई थी उससे जो तुझे परख ना सकी वो,
तेरी दोस्ती की नियत को भाँप ना सकी वो,
ज़ज़्बातों को तो बयाँ भी कर सकता था तू,
पर उसके लिए प्यार भी तो होना चाहिए था।
खोकली थी तेरी हर बात
और तेरा हर सच एक झूठ था,
क्योंकि तुझे कोई इश्क़ नहीं
बस पाने का फ़ितूर था,
और ये इश्क़ का बहाना भी
महज़ बनाया हुआ था।
गलती उसके इशारों को देकर,
अपनी उस बेजा हरकत को सही ठहराया गया था।
चुप अगर आज बैठ जाती वो,
तेरे ग़ुनाह और भी बढ़ जाते,
तेरे चेहरे पर तो शिकन की एक लकीर भी ना थी,
इसलिए तेरा आईना दुनिया को दिखाना जरुरी था,
और उससे भी कहीं ज्यादा लोगों को
तेरी शैतानियत से रूबरू करवाना था।
तू नज़रों से तो गिर ही चुका था,
पर उसकी मासूमियत की आँच को
तू छू भी ना सका था,
सर ऊँचा करके चलने का तो तेरा कद ना रहा अब,
सब्र थोड़ा तो कर, इन्साफ करेगा तेरा वो रब।।
