आवाज़
आवाज़
कोशिशों में भी तेरी आवाज़
क्यों न जाने मुझे पुकारे
रातों में कराहता बदन
फिर क्यों तुम्हें पुकारे
आवाज़ दो ना फिर मुझे
कानों को यह ध्वनि पुकारे !
मत समझो की आवाज़
छोड़ गई मुझे
सुनती थी कभी रात जग जागरण
इसलिए शायद तुझे पुकारे
आवाज़ दो ना फिर मुझे
कानों को यह ध्वनि पुकारे ! !