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KUMAR अविनाश

Romance Tragedy

4  

KUMAR अविनाश

Romance Tragedy

आठों याम तुम हो स्मरणीय

आठों याम तुम हो स्मरणीय

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आठों याम तुम हो स्मरणीय तुम्हें वंदना !

गीत तुम्हारे ही गाता है मन तुम्हें वंदना !!


तुम्हारी फुलवारी में भवरा मन तुम्हें वंदना !

चरण धूलि चाहे यह मेरा मन तुम्हें वंदना !


जब भी आंखें बंद हुई सपने में आती वंदना

जब आंख खुली तो नजर ना आई तुम वंदना


अब क्या कहूं किससे कहूं कोई समझे नहीं वंदना

एक आस एक सांस बस तुम्ही से तो थी वंदना


मन है व्याकुल नैन है आकुल बस तुम्हे निहारे वंदना

कुछ समझ नहीं आता जी घबराता बस तुम्हारे लिए वंदना


दूर हुई जिस्म से मन से और भी पास हुई

पहले थी धड़कन मेरी अब तो मेरी सांस हुई


एक तुम्हारी याद के सहारे ही कटेगी जिंदगी

और किसी की नहीं करनी मुझको बंदगी


जीवन है काल का गुजर एक दिन जाएगा

ये काल ही अब हम दोनों को मिलाएगा।


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