आत्मा नहीं तड़पेगी क्या
आत्मा नहीं तड़पेगी क्या
दुनियाँ की भी अजीब रिवायत है
जीते जी जिसे कभी पूछा नहीं
जिसका ख्याल नहीं रखा
उसके मरने पर खाना खिलाओ ।
जिसके जीते जी कभी सुध नहीं ली
मरने पर उसे पानी अर्पित करो,
जीते जी जिसके खाने का पूछा नहीं
मरने पर उसे छप्पन भोग अर्पित करो ।
जिसको जीते जी कभी पैसे मिले नहीं
मरने पर उसके पैसे दान करो ,
जो कभी नए कपड़े पहनने को तरसता था
मरने के बाद उसके नाम पर नए कपड़े दान करो ।
जिस गाँव के लोग दुःख में कभी पूछने नहीं आए
उन्हें तेरहवीं पर न्यौता देकर खाना खिलाने बुलाओ,
जिस पंडित ने कभी सम्मान की नजरों से नहीं देखा
उसे बुला आवभगत करके स्वादिष्ट भोजन करवाओ।
जिसके पास जमीन-जायदाद और धन-दौलत है
उनके लिए तो कोई कठिन नहीं श्राद्ध का खर्च उठाना,
मगर जिनके पास खाने को भी पैसे नहीं
वो कैसे उठा पाएँगे श्राद्ध का दोगुना खर्च ?
उनके लिए तो स्थिति
करो या मरो वाली हो जाती है ,
या तो दुनियाँ के रिवाज को पूरा करें
या फिर खुद को मौत के हवाले करें।
साहूकार से पैसे तिगुने ऋण में लेकर
श्राद्ध के खर्चे और रस्में पूरी करें
या खुद को फाँसी लगा और जहर खा कर
मृत्यु को खुशी-खुशी गले लगा लें।
ये दुनियाँ मरे हुए की आत्मा को
शांति पहुंचाने के नाम पर ,
जिंदा लोगों को जीते जी
मार डालते है श्राद्ध के नाम पर।
और श्राद्ध में किया गया दान
तभी फलीभूत होता है,
जब उसे पूरे मन से
दिया जाता है।
जिंदा लोगों के मन को दुःखी करके
उनके मुख से निवाला छीन के,
कोई सी भली आत्मा को सुकून मिलेगा
आखिर मरने वाला भी तो उनका अपना ही होगा।
उनकी ये हालत देख के
आँखों से आँसू नहीं आएंगे क्या ,
खुद को भरपूर मिलता देख के
उनके खालीपन को देख आत्मा नहीं तड़पेगी क्या?
