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Yogita Sahu

Horror

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Yogita Sahu

Horror

आस्तीन के साँप

आस्तीन के साँप

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दीवानगी में इस कदर हुई बावली

और कुछ नजर आई नहीं

ना जाने कहा डूबी है पगली

कुछ रास्ता और नजर आई नहीं


दिल लगाके बैठे थे

कर रहे थे इंतजार

रोज देखने को तरसता था

ये दिल भी था बेकरार


जो देखे थे उसके साथ सपने

सब सपने ही निकल पड़े

करता था बाते चार हमसे

ओ आस्तीन के सांप निकल पड़े


मंदिर मस्जिद तो जुड़ जायेगा

फिसला जुबान क्या वापस से आयेगा

एक बार टूटकर बिखर गया दिल

क्या टूटा दिला फिर से जुड़ जायेगा


जिन आंखों में झलकती थी

हरदम खुशियों की बौछार

खा लिया हैं चोट दिल ने

बह रहे अब आंसू की धार।


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