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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

आस्तीन के सांप

आस्तीन के सांप

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आस्तीन के सांप तो आज हर जगह बैठे हैं

कहीं सखा तो कहीं रिश्तेदार बनकर बैठे हैं


छुपकर ऐसे लोग तो हमेशा से वार करते हैं

फिर ये तो अपनी बहादुरी की बात करते हैं


आस्तीन के साँप तो हर घट में छिपे बैठे हैं

बुजदिल हो,शेर की खाल पहने हुए बैठे हैं


बेचारे कुत्ते आज तलवे चाटना भूले बैठे हैं

इंसान जो तलवे चाटने में मशहूर हो बैठे हैं


आस्तीन के सांप तो आज हर जगह बैठे हैं

बहुत से घर मे नींव के पत्थर से दबे बैठे हैं


बेचारे सर्प बड़े शर्मिंदा हैं,इंसान जो जिंदा हैं,

इंसान जो सांपों से ज्यादा विषैले हो बैठे हैं


अब सांपो को बदनाम करना बंद कर दो न,

इंसान जो गद्दारी में ऊंचा नाम कर बैठे हैं


आस्तीन के सांप तो आज हर जगह बैठे हैं

पर जो साखी इन सांपों से बचकर रहते हैं


वो ही दुनिया मे खिले हुए गुलाब हो बैठे हैं

वो अपनी कश्ती तूफां में भी हंसाये बैठे हैं।


जो आस्तीन के सांपो पे डंडा मारकर बैठे है

फिर वो तो इस जग मे मुस्कुराए हुए बैठे है



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