आसक्ति कुछ यूं
आसक्ति कुछ यूं


तेरा रंग जो मुझपर चढ़ता है
अमिट, जीवन तक गहरा है
मेरा ढंग जो तुझ से मिलता है
वो भी इश्क़ उजागर करता है
मेरा भाव तेरे प्रति है स्थिर
जब तक सृष्टि कि क्षमता है
हक़ीक़त हो या ख्याल
बस एक जो चेहरा दिखता है
बारिश हो या हो सर्द हवा
मन तेरा स्पर्श समझता है
मेरा भाव तेरे प्रति है स्थिर
जब तक सृष्टि कि क्षमता है
धक धक करता जो है भीतर
तेरी ही धुन में रमता है
एक तेरे होने की स्मृति भर से
ख़ुशियों का सैलाब उमड़ता है
मेरा भाव तेरे प्रति है स्थिर
जब तक सृष्टि कि क्षमता है
कुछ फूल जो आए हैं मुझ तक
तू उन प्रसूनों की कोमलता है
कभी ग़म में गिरते ये आँसू
मीठा खारा अनुवाद भी करता है
मेरा भाव तेरे प्रति है स्थिर
जब तक सृष्टि कि क्षमता है।