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आशा

आशा

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आशा,

हँसती हुई फिर आ गयी सुबह,

आशा के बीज मन में बोती सुबह,

कि एक दिन फूल खिलेंगे,

आशा के नन्हे पौधों पर।


फिर छाएगी हरियाली आशा की,

फिर फूटेगी कोंपल हर मन में आशा की।

कि सपने फिर साकार होंगे,

संबल फिर से मिलेगा आशा का।

कि रखेंगे सपने पूरे होंगे ये आशा दिल में,

फिर करेंगे हम खेती आशा की।


मगर,

ए -सुबह, ए-आशा,

तू कहां जानती है,

कि दुनिया तुझ पर अब भी टिकी है।

न जाने कितने दसकों से ,

ये दिल करता रहा खेती आशा की।

मासूम नन्ही कोंपल फूटती हैं,

लहराती हैं हवा से साथ आशा की।


फिर वक़्त वो भी आता है,

सपने पूरे नहीं होते आशा से।

निराशा की शाम के आने के साथ।

बर्बाद हो जाती है फसल आशा की

सपने टूटे तो दिल भी टूट जाता है,

किन्तु दिल फिर संभालता है।

फिर बोता है बीज ,

हर सुबह के साथ आशा के।

कि एक दिन तो सपने पूरे होंगे,

फिर से कोंपल फूटेगी आशा की।


तुझे नहीं पता पर,

ये ज़िन्दगी टिकी ही है तुझ पर।

सुबह के रोपे गए हर बीज पर,

जिससे हज़ारो छोटी से कोपलें अँगड़ाई लेती हुई उठती है,

और कहती है मुझसे, सुप्रभात, दिन मंगलमय हो।


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