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ज़िंदगी की डायरी

ज़िंदगी की डायरी

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वक्त का परिंदा कभी रुका ही नहीं

सोचा था ज़िंदगी बनाने का सपना

ज़िंदगी मेरी डायरी है हर वक्त अपना

मन में एक प्रश्न है उठता

ए ज़िंदगी तू है क्या ?


ख़ुशी का था राज तो

कलम थमी भी नहीं

बस लिखती गयी ज़िन्दगी की डायरी

जब दुःख आया तो

कलम थम -, सी गयी

रुक गयी अधूरी

मेरी ज़िन्दगी की डायरी

एक शब्द भी लिख न पायी कलम

दुःख में भी लिखते जाना

ज़िन्दगी की डायरी


हर पल, हर क्षण का

घटना है लिखना

कब भरेगी

मेरी ज़िन्दगी की डायरी


ए वक्त आ के बता ना मुझे

तुम्हे रोकने का तरीका

ताकि मैं भी थोड़ा आराम कर सकूँ...!







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