मैं और मेरी इच्छा
मैं और मेरी इच्छा
अंतर्मन से टूट रहा, मैं
जो, भलाई मार्ग पर निकल पड़ा
रोजगार दिलाता, हौंसला बढ़ाता
पर, मायूस हूं मैं आज खड़ा ।।
तन, मन, मेरी आत्मा शुद्ध है
सफल नहीं तो क्या हुआ
अच्छा सोचा, अच्छा करता
मैं, नई उम्मीद संग आगे बढ़ा।।
निश्छल, निर्मल, मेरा हृदय कोमल
दुःख, लोगो का न देखा गया
उनके जैसे दिन भी देखें
बेरोजगारों का सहायक ऐसे बना।।
कभी पैसे दे, कभी बेगार में
दाता मैं रोजगार बना
अंतर्मन की तृप्ति होती
बेरोजगार को जैसे ही काम मिला।।
सद्भावना, आश-विश्वास संग
सहयोग भी मुझको सबका मिला
देरी होती काम में मेरे
निजी, रोजगार पर कर दूं खड़ा।।
मलहम बन कुछ जख्म तो भर दूं
ईश्वर से ये मांग रहा
अच्छा-बुरा मैं क्या जानूं
बेरोजगार की मदद को निकल पड़ा।।
