सद्भावना व नैतिकता
सद्भावना व नैतिकता
विडंबना कैसी इस समाज की
इंसान-इंसान में क्यूं भेद बता
अभिमान गजब का उच्च कुल का
जरा नीचे कुल का दोष बता।।
स्वार्थ की चक्की घूमेगी कब तक
उसका अंत होगा कब ये तो बता
परिवर्तन का नाम होता जिंदगी
खेल ऊंच नीच का महंगा बड़ा।।
न रोटी न पानी किसी को
नैतिकता कहां तेरी ये तो बता
लहू लुहान जो हिंसा करते
उनकी हैवानियत की सीमा क्या है बता।।
गरीब-कमजोर क्यूं सताये जाते
ताने सुनते कभी चोट भी सहते
डरे-सहमे जो रहते हर पल
उनकी, प्रताड़ना की सीमा क्या है बता।।
गीता ज्ञान क्या धरा रह गया
धर्म का सार क्या ये तो बता
स्वधर्म तक सीमित दुनिया
सद्भावना की नियत कहां है बता।।