आरजू नहीं करते
आरजू नहीं करते
खोल करके दिल जो भी,
गुफ्तगू नहीं करते ।
हम भी उनसे मिलने की,
आरज़ू नहीं करते।।
क्यों दहेज़ के खातिर,
बिबियां जलाते हो ।
अपनी बेटियों को तुम,
क्या बहु नहीं करते।।
रहते हैं एक पौधे में,
फूल और कांटे भी ।
खुशबू फिर भी ये,
दोनों हुबहू नहीं करते।।
आजकल के इन्सां भी,
कितने ये मतलबी हैं ।
क्या है फ़र्ज़ इन्सानी,
जुस्तजू नहीं करते।।
बात ग़र मुहब्बत का हो,
तो आगे हैं हम भी ।
बात कोई नफरत की,
हम शुरू नहीं करते।।
खोल करके दिल जो भी,
गुफ्तगू नहीं करते।
हम भी उनसे मिलने की,
आरज़ू नहीं करते।।
