मित्रता
मित्रता
बहुत कठिन है
परिभाषा में बांधना
मित्रता को।
दम तोड़ देती है
परिभाषा की चौखट
पर पहुंचते- पहुंचते ।
यह निर्बंध है
मुक्ति का द्वार है ।
मित्र के दु:ख का हलाहल पीकर
जो अपने हिस्से के
सुख का अमृत पान करा दे ।
वही मित्रता के रथ को
निरंतर आगे बढ़ा सकता है ।
विपत्ति में
मित्रता की सच्ची परख होती है ।
सुख में तो बहुतेरे
मित्र आकाशीय
यात्रा की उड़ान भरते हैं ।
दिखाते हैं सब्ज़बाग
स्वप्निल दुनिया की सैर कराते हैं ।
लेकिन जो दुर्दिन में
आंसू को भाप बनाकर मेघ
में मिला दे ।
वही सच्चा मित्र होता है
और ऐसी मित्रता ही
तवारीख़ में स्वर्णाक्षरों में लिख जाती हैं ।
सुदामा और कृष्ण
कर्ण और दुर्योधन।
परिचायक हैं इस बात के
ज़िंदगी की रूमाल में
गठियायी जा सकती है
ऐसी मित्रता की मिसाल ही।
