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Sitaram Budhibaman Behera

Abstract

4  

Sitaram Budhibaman Behera

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आओ मिलकर घाटी संवारे

आओ मिलकर घाटी संवारे

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आज इन वादिओं को 

एक अर्श के 

बाद 

मुक्ति मिला 

है दोस्तों !

अब वो होएगा 

फिर से 

आवाद 

बरसो से 

लहू लुहान 

होने के बाद !!


जिन्होंने बोए 

थे 

नफ़रतें 

की फसलें 

आज वे 

दरिंदे 

डर चुके है !

पैगाम ए  

अमन 

ठुकराये थे 

जिन्होंने 

आज फिर 

अपनी जमीर 

मार चुके 

है !!


खुद के 

औलाद 

परदेश में 

आवाद 

औरों के संताने 

पत्थर वाज़ !

जिन छलिओं के 

लंका आज उजड़े 

उन की 

निकले 

'फटफटी 'आवाज़ !!


जिन्होंने खोए थे 

अपनी औलाद 

अपनी सुहाग 

अपना बेटा !

जा कर छलिए 

पूछ जरा उन्हें 

जिगर छलनी 

किस किस ने 

किया? 


कितने पंडित 

आँखों के 

सामने 

मरते अपने 

संताने, सिंदूर, 

लाडली देखे !

खुद के 

घर से पलायन कर 

शरणार्थी 

बन कर 

जीवन काटे !


उन की आँखों में 

घर वापसी 

के 

हजारों 

सपनो की 

आज है भीड़ !

नफ़रतें 

के सारे 

दिवार गिरा 

दे 

ख़ुशी खुशी से 

दिल को 

दिल से 

जोड़ !


और ना मरे

 सरहदें पर 

माँ भारती के 

एक संतान !

फिर ना 

उजड़े माताओं के 

कोख 

दफना दे सारे 

बम बंदूक !


उन की थोड़ी 

सी 

मदद कर 

दे 

जो इन वादिओं में 

अमन चाहे !

सत्ता की 

लालच 

परिवार 

की घमंड 

भुला कर 

आओ 

घाटी संवारे !


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