आओ मिलकर घाटी संवारे
आओ मिलकर घाटी संवारे
आज इन वादिओं को
एक अर्श के
बाद
मुक्ति मिला
है दोस्तों !
अब वो होएगा
फिर से
आवाद
बरसो से
लहू लुहान
होने के बाद !!
जिन्होंने बोए
थे
नफ़रतें
की फसलें
आज वे
दरिंदे
डर चुके है !
पैगाम ए
अमन
ठुकराये थे
जिन्होंने
आज फिर
अपनी जमीर
मार चुके
है !!
खुद के
औलाद
परदेश में
आवाद
औरों के संताने
पत्थर वाज़ !
जिन छलिओं के
लंका आज उजड़े
उन की
निकले
'फटफटी 'आवाज़ !!
जिन्होंने खोए थे
अपनी औलाद
अपनी सुहाग
अपना बेटा !
जा कर छलिए
पूछ जरा उन्हें
जिगर छलनी
किस किस ने
किया?
कितने पंडित
आँखों के
सामने
मरते अपने
संताने, सिंदूर,
लाडली देखे !
खुद के
घर से पलायन कर
शरणार्थी
बन कर
जीवन काटे !
उन की आँखों में
घर वापसी
के
हजारों
सपनो की
आज है भीड़ !
नफ़रतें
के सारे
दिवार गिरा
दे
ख़ुशी खुशी से
दिल को
दिल से
जोड़ !
और ना मरे
सरहदें पर
माँ भारती के
एक संतान !
फिर ना
उजड़े माताओं के
कोख
दफना दे सारे
बम बंदूक !
उन की थोड़ी
सी
मदद कर
दे
जो इन वादिओं में
अमन चाहे !
सत्ता की
लालच
परिवार
की घमंड
भुला कर
आओ
घाटी संवारे !