आओ हमारे गाँव..!
आओ हमारे गाँव..!
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विविध रंग/
विविध रूप के पंछी
अभी आते हैं
मेरे गाँव में...!
उस पेड़ पर अपना रैन बसेरा करने...!
हाँ...!
अभी शेष है कुछ पौधे/
कुछ पोखरे/
और...
एकाध तालाब भी...!
जहाँ अठखेलियाँ करते
दिख जाते हैं
बहुतेरे पंछी
सुखद लगता है उनको देखना
जब वो करते हैं मृदा स्नान/
जल क्रीड़ा करते ये पंछी
फुदकते हैं यहाँ- वहाँ...!
जब चाह चाहाते हैं तब लगता है
प्रकृति ने अपना मधुर
राग विहान छेड़ा हो...!
मन मयूर झूम उठता है
उनकी प्रणय लीला को देखकर...!
जाने कितने ज्ञात- अज्ञात
पंछियों की शरण स्थली है
मेरा गाँव...!
आओ कभी इधर
दिखाऊँगी तुमको
कितना सुखद है उनका होना...!
जी नहीं भरता उनकी क्रीड़ा को देखकर...!
हाँ...!
अभी जीवित है,
हमारे गाँव में
अनेक पंछियों का विलुप्त होता संसार...!
व्याप्त है चाहूँ ओर
उनकी विविध ध्वनि,
गुंजायमान है अभी
उनका समवेत स्वर में
मधुर गान...!
कभी आओ हमारे गाँव...!