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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

आओ चले

आओ चले

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हृदय कंदराओं में

पेड़ शाखाओं में

आओ रहने चले


वो बुरे अहसास

दिल को देते घाव

आओ भूल चले


सत्य के साये में

जीये स्व साये में

आओ जिंदा चले


तोड़ दे बंधन

लगाये चंदन

आओ नीम तले


वो बचपन घरौंदे

फिर से बनाने 

आओ घर चले


हम हंसते रहे

गम भूलते रहे

आओ फूल बने


छली रिश्तों से

छली लोगों से

आओ दूर चले


मिटाये अंधेरा

लाये सवेरा

आओ सत्य बने


आम न लगाये

बबूल भी न बने

आओ हम खिले


तोड़े मतभेद दीवारें

तोड़े नफरत सारे

आओ गले मिले


पुराने मित्रों को

पुराने पत्रों को

आओ पढ़ चले


होंगे खत्म गम

टूटेंगे सब भ्रम

आओ मित्र बने


घर में खुशियों हो

सब हंसीं चेहरे हो

आओ एक घर बने


अपनी अग्नि से,

कोई मासूम न झुलसे

आओ क्रोध छोड़ चले


खिलेगी बगिया

रेगिस्तानों में

आओ शीतल बने


होगी रोशनी

बंद चरागों से

आओ दीप बने



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