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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance

आओ आज फिर से तुझे अपनी कविता सुनाता हूँ !

आओ आज फिर से तुझे अपनी कविता सुनाता हूँ !

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आओ आज फिर से तुझे अपनी कविता सुनाता हूँ !

मन में चल रहे आशा- निराशा के मिश्रित भाव बतलाता हूँ !

नाउम्मीदी के इस दौर में भी तेरा उम्मीद पाकर

जीवन पथ पे सतत् सृजनरत रहते जाता हूँ।

आओ आज फिर से तुझे अपनी कविता सुनाता हूँ।

अब तुझे ही अपनी केंद्रबिंदु मानकर संग कुछ कर गुजरने का संकल्प फिर से दोहराता हूँ,

एक- दूसरे के साथ से हम अपनी मिसाल कायम करें ऐसा फिर से उत्साह जगाता हूँ।

आओ आज फिर से तुझे अपनी कविता सुनाता हूँ !

अपनी लेखनी में तुझे स्याही के रूप में भरकर तेरे दिल पे उतरते जाता हूँ।

तुम्हारे दिल में मेरे दस्तक का एहसास आज फिर से तुझे कराता हूँ !

आओ आज फिर से तुझे अपनी कविता सुनाता हूँ।

संग अंतिम साँस तक जीने - मरने के वादे को,

यकीनन हकीक़त में तबदील करवाता हूँ। 

अपने अल्फ़ाजों की आहट से तुझे फिर से खुद में जगवाता हूँ !

सरगम बनकर तेरा, तेरे गले से तेरे अंदर तक जाता हूँ !

तेरे दिल में बनाकर आशियाँ तेरे अंदर ही बस जाती हूँ।

आओ आज फिर से तुझे अपनी कविता सुनाता हूँ।


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