आंसू और पत्थरदिल
आंसू और पत्थरदिल
पलटकर उसने क्या कहा
कि वो जज़्बाती हो गये,,
खुद को अभी संभाला भी न था
और आंसू निकल पड़े.
चुभती हैं बातें अपनों की
कभी-कभी शूल बनकर,,
मुस्कुराना फिर भी पड़ता है
कभी-कभी फूल बनकर.
जमाना चाहे लाख बुरा हो
प्यार हो ही जाता है,,
सीरत भली हो या ना हो
दिल धोखा खा ही जाता है.
हर कोई चाहता तो यही है
कि प्यार अपनों सा प्यार करे,,
मुकद्दर ही साथ ना दे तो
तो कोई दिलदार क्या करे.
ये तकदीर भी
गजब तमाशे दिखाती है,,
फूल से नाजुक दिल को
किसी पत्थरदिल से जा मिलाती है।