S N Sharma

Abstract Romance

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S N Sharma

Abstract Romance

आंखों की बदरी भर आई।

आंखों की बदरी भर आई।

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तुमने निश्चल नेह दिया मैं उसकी कदर न कर पाई।

अफसानों की दुनिया में खोई प्रतिनेह न कर पाई।


अविरल प्रेम दिया तुम बोले मैं कुछ भी न दे पाया।

मैं दीवानी समझ सकी न क्यों महकी मेरी काया।


झूले खुशियों के झूले पर कारण नहीं समझ पाई

तुमने निश्चल नेह दिया मैं उसकी कदर न कर पाई।


तेरे कदमों पर सर रखकर मैं बेफिक्री में सोई रही।

उड़ती आशा नभ में सतरंगी सपनों में खोई रही।


तुम प्रेम के दीपक थे मेरे , इतना नहीं समझ पाई।

तुमने निश्चल नेह दिया मैं उसकी कदर न कर पाई।


तुम चले गए तो जाना तुम क्यों सपनों में आते थे।

चेहरा ले मेरा हाथों में  आंखों में झांके जाते थे।

पहचाना जब प्यार तेरा आंखों की बदरी भर आई।

तुमने निश्चल नेह दिया मैं उसकी कदर न कर पाई।



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