आंखे
आंखे
आँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया
मैंने दिये को आंधी की मर्जी पे रख दिया,
आओ तुम्हें दिखाते है अंजामे-जिंदगी
सिक्का ये कह के रेल की पटरी पे रख दिया,
फिर भी न दूर हो सकी आँखों से बेवगी
मेहँदी ने सारा खून हथेली पे रख दिया,
दुनिया को क्या खबर इसे कहते है शायरी
मैंने शक्कर के दाने को चींटी पे रख दिया,
अंदर की टूट-फुट छिपाने के वास्ते
जलते हुये चराग को खिड़की पे रख दिया,
घर की जरूरतों के लिए अपनी उम्र को
बच्चे ने कारखाने की चिमनी पर रख दिया,
पिछला निशान जलने का मौजूद था तो फिर
क्यों हमने हाथ जलते अंगीठी पे रख दिया।