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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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मुझे भी आजादी चाहिए

मुझे भी आजादी चाहिए

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रोज़ सवेरे से शाम तक

सुनता हूँ स्वर

शोर भी।


जागते ही चाहता हूँ सुनना

आज़ाद चिड़ियों की चहचहाहट,

लेकिन सुनता हूँ नारा-

आज़ादी चाहिए चिड़ियों को,

किसी न किसी टीवी चैनल पर - रेडियो पर।


चाहता हूँ सुनना संगीत,

जो जोड़े ईश्वर से,

लेकिन सुनता हूँ पूजा और

अजान की प्रतिद्वंदिता।

चलो छोडो भी,

ईश्वर की परवाह यहां कर कौन रहा ?


सुनना चाहता हूँ अपने परिवार की हंसी,

लेकिन सुनता हूँ शहीदों की पत्नियों की

चूड़ियाँ टूटने का स्वर।

इसे कैसे यूं ही जाने दूँ ?


सुनना चाहता हूँ अपनी गाड़ी में बैठ खुद ही की सीटी,

लेकिन सुनता हूँ मुझसे आगे निकलने की होड़ का हॉर्न।

जाओ भाई निकलो आगे - ध्वनि प्रदूषण।


सुनना चाहता हूँ अपने दिमाग की रचनात्मकता,

लेकिन सुनता हूँ, इसे आगे मत बढ़ने देना।

कमाल की धक्का-नीति है ना!


सुनना चाहता हूँ अपने दिल के भाव,

लेकिन सुनता हूँ थकती धड़कन का स्वर,

आखिर धूल-धुंआ श्वास के जरिये जा रहा है।


सुनना चाहता हूँ अपने मन की कविता,

लेकिन सुनता हूँ बेरोजगारों का काम है कविता लिखना।

यह कहते हैं काव्य-गोष्ठियों के मुख्य अतिथि ही - अकेले में।


सुन रहा हूँ यह सब,

क्योंकि आज़ादी है अभिव्यक्ति की।

काश ! होती आज़ादी मौन की भी।

कोई तोड़ ना पाता जिसे।


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