हमारी हिन्दी
हमारी हिन्दी
हिन्दी हमारी
सजी बिन्दी
है माथे इसके
बता न दो
हमारी हिन्दी
का माथा
किस और
भाषा में है आता।।
वाचाल जग यह
मौन हो जाएगा
ग़र हिन्दी का साथ
वह नहीं पाएगा
है हिन्दी
तो कलरव सजा है
नहीं तो गूंगे जमात से
रह जाता सबका नाता।।
हर भाषा की प्राण
अपनी हिन्दी ही भ्राता
अ, ल, ई, फ जब
हिन्दी से न आता
अलीफ कौन बोल पाता
ऐसे ही क, ऐ, ट
हिन्दी न लाता
फिर कैैट कैसे वह कह पाता।।
ध्यान लगा के
देख तो बंधु
हर भाषा की जननी
वह जर्मन, रसियन, जापानी हो या चीनी
है हिन्दी ही अपनी
जोड़ हिन्दी से नाता
हर रूप में ईश को
बस एक भाषा यही है भाता।।
हिन्दी का दर्शन
जब सब समझ जाते
देश दुनिया में
फिर यूँ अंगार न उगाते
बलशाली हिन्दी के बल से
चहुं ओर प्रेम लहराता
मानव मानव तो बस फिर
मानव उत्थान के गीत गाता।।