भूतों का घर..
भूतों का घर..
बड़ा ही रोचक विषय है भूतों का घर
अभी से सताने लगा हमें भूतों का डर
समझ नहीं आता क्यूँ ये ख़तरनाक होते हैं
बेवजह ही क्यूँ सबपे ये ग़ज़बनाक होते हैं
बड़े बड़े महलों में रहने के क्यूँ दीवाने हैं
छोटी सी झोपड़ी के नाम पे क्यूँ बेगाने हैं🛖
क्या भयानक आवाजें निकालना ज़रूरी है
चरर. से दरवाज़ा खुले बिना इनकी हॉरर स्टोरी अधूरी है
जब भूत हो तो लालटेन का क्या काम है तुम्हें
बताओ ज़रा ये बेवजह क्या एहतमाम हैं तुम्हें
ये मत समझाना तुम्हारी खिंचाई हो रही है
तुम्हारी हर बात पर यहाँ जग हँसायी हो रही है
मालूम है हमें आज रात भी बारह बजेंगे
रात के बारह से तीन तुम्हारे जलवे रहेंगे
फिर बिस्तर में दुबक के हम दुआएँ पढ़ेंगे
हम बहुत देर के सो चुके तुमसे यही कहेंगे
तमाम की बात नहीं लेते तुमसे ज्यादा पंगा
गुस्से में ना आ जाओ हो ना जाये कहीं दंगा
देखो यहाँ शाम भी धीरे धीरे होने वाली है
बरसात की रात भी क्या घनघोर काली है
आधी रात को यूँ घुँघरू पहन कोई आता है क्या
करके छम छम... यूँ नींद में कोई डराता है क्या
सुनो उल्लु,सियार,भेड़िये,बिल्ली तुम्हारे तुम्हें मुबारक
हम बिलकुल नहीं भूत विरोधी अभियान के विचारक ।