STORYMIRROR

Neeraj pal

Abstract

4  

Neeraj pal

Abstract

प्रीतम

प्रीतम

1 min
474

होठों पर प्रीतम का नाम रहे, गुजरे सुबह और शाम।

तेरे सिवा कोई और न भाता, चाहे कृष्ण कहो या राम।।


खड़ा हूँ तेरे द्वार पर, बन कर एक दीन भिखारी।

प्यासा हूँ तेरे दर्शन को, तुम हो संकट हारी।।


भोग, विलास में जीवन बीता, विषयों ने जाल बिछाया।

पतित हुआ मन तड़प रहा, ओझल होती यह काया।।


अशरण शरण तुम हो स्वामी,पतितों के पतित पावन।

सेवक बन तुमसे वर माँगू, प्रेममय हो मेरा जीवन।।


आस लगाए बैठा हूँ कब से, दे दो भक्ति का दान।

"नीरज" को मत ठुकरा देना, मेरा प्रीतम है सबसे महान।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract