आमंत्रण
आमंत्रण
आमंत्रण तो था ही
और जब वहां पहुंचा
तो मेला सा था ।
नृत्य चल रहा था
उमंग की धुनि पर,
खुशी नाच रही थी
तन्हा,तन्हा,
पुरुषार्थ के रंग में रंगी,
सफलता गुनगुना रही थी,
अपनापन रिश्तों के
गले लग रहा था,
आनन्द सावन की फुहारों
की तरह बरस रहा था,
प्रेम में डूबे हुये लोग
खोए हुये थे
एक दूसरे की बाहों में,
और मां इस चलते हुये
अद्भुत उत्सव में
मुझे देख देख मुस्करा रही थी।