आख़री पन्ना
आख़री पन्ना
कोरी ज़िंदगी के कोरे हिसाब लिखा है ज़रा ग़ौर से पढ़ना ,
हर एक खाब लिखा है
जिनको मिली ना मंज़िल कभी सफ़र में
उन अंधेरी गलियों को भी आफ़ताब लिखा है
कलम रो देती है , हर एक लफ़्ज़ों पे
हर दास्तान को क्यूँ क़त्ल ऐ आम लिखा है
शायद रूह तक छू गई थी बेवफ़ाई तभी
ऐ ज़िंदगी तुझे हमने समशान लिखा है
लिखा है टिमटिमाते दर्द को फलक मेरे
वो आख़री पन्ने पे फिर भी सलाम लिखा है
कोरी ज़िंदगी के कोरे हिसाब लिखा है
ज़रा दिल को थाम के पढ़ना ,दर्द यहाँ बेहिसाब लिखा है!
