आखिरी कागज
आखिरी कागज
फिर से नम आँखें ,दो रोटी की मोहताज ,
एक हाथ में कलम ,दूजे हाथ में कई राज़।
ये आखिरी कागज जो ,अधूरा था बिन हस्ताक्षर ,
आज उस पर भी ,सजेंगे कई अक्षर।
ना जाने अब तक कितने कागज ,कर दिये मोह के हवाले ,
वो फिर भी असंतुष्ट खड़ा ,माँगे मुझसे मुँह के निवाले।
पास में बैठी जीवनसंगीनी ,हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रही थी ,
अपने पेट के जाये से ,अपनी लाज बचा रही थी।
मगर वो पापी और अधर्मी ,खड़ा मुस्कुरा रहा था ,
माया जाल से भ्रमित हो ,मखौल उड़ा रहा था।
दिल पर पत्थर रख ,उस काँपते हाथ ने ,
कर दिये हस्ताक्षर ,उस आखिरी कागज पर।
आज लाचार थे वो माता - पिता ,जिन्होने उसे पालपोस कर बड़ा किया ,
अपनी आखिरी सम्पत्ति को भी ,हँसते - हँसते उसे समर्पित किया।
