आज की राधा
आज की राधा
नारी ही छीन ले गई
नारी का देवालय
पर भूल गई केशव
का न्यायालय।
कैसे स्थापित करेगी
अपने महल में कन्हाई
जो महल और देवालय में
अंतर न समझ पाई।
वो विवाहिता के मंदिर
से उलझ गई।
अपने को राधा बताने वाली,
यह जान न पाई
राधा के हृदय में
बसते थे कन्हाई
इसलिए कभी द्वारिका
न जा पाई।
कभी रुकमणी की
गृहस्थी में आग न लगाई।
न ही द्वारिकाधीश के
नंदनों से की रुसवाई।
आज हर बाला अपने
को कहलाना चाहे राधा।
पर कृष्ण को हृदय में
बसा न पाए ,
आज की राधा।
लव बाइट देने वाली
आज की राधा ,
कैसे शूल निकाल
मरहम लगाए,
आज की राधा।
निस्वार्थ प्रेम कहाँ से लाए,
आज की राधा।
दुनिया में उलझ गई,
माया में फँस गई ,
आज की राधा।
कैसे कृष्ण की प्रेयसी बन ,
अपना देवालय बनाए,
आज की राधा।
कैसे किसी की प्रेम नींंव पर
स्थापित करे अपना महल,
आज की राधा।