आईना
आईना
जहाँ जहाँ जाऊं
तुझको ही पाऊँ
मेरे पास क्या है
करूँ तुझे अर्पण
तेरी छब है प्यारी
सबसे है न्यारी
तेरी कृपा साफ दिखाता
मेरे मन का ये दर्पण
आसमान या सागर
जमीन हो या हवा
हर ओर तेरी लीला
मैं तो हो गयी दंग
प्रभु तुझसे परे
तो नहीं हूँ मैं
तू है देह तो
मैं हूँ तेरा प्रतिबिंब
तुझ बिन मैं क्या
कुछ भी तो नहीं
तेरी भक्ति देती हैं
मेरे जीवन को मायना
भूत भविष्य को
बांधता हैं तू मेरे
तुझी में दिखता
मेरे जीवन का आईना
