आगमन
आगमन
अधरों तक आकर गीत ठहर जाता है,
नयनों तक आकर नीर लौट जाता है।
प्रतीक्षा में तुम्हारी कबसे विकल बैठी हूँ,
नींद लिये ऑंखों में अभी जगती बैठी हूँ।
सोचती हूँ प्रिय मीत मेरा कभी तो आयेगा,
हँस उठेंगे अधर, शून्यत्व दूर होगा।
मधु गीत जो मैं गुनगुनाना चाह रही थी,
गूँज उठेगा और ख़ुशियाँ हमारी होंगी।।
अधरों तक आकर गीत ठहर जाता है,
नयनों तक आकर ,नीर लौट जाता है।