आदत
आदत
अब तुम आदत में
शुमार हो गई हो
लोग भी कहते है
हमारी आदत बिगड़ गई है।
कुछ लोगों का यह मानना है
तुम अब तुम नही हो
मैं ही हो गई हो
मैं भी अब कहाँ मैं रहा हूँ
सब तुम ही हो गया हूँ
मेरा अपना-बेगाना अब
सब तुम ही हो गई हो
और मैं लोगों से कहता हूँ
तुम मेरी ज़िंदगी हो गई हो
जो दिखता है अपना
कितना सुंदर है वो सपना
मेरे सपने भी अब तुमसे
उनकी बानगी भी तुम हो
सब जलने लगे है शायद
अब कुछ-कुछ मुझसे
क्योंकि तुमसे मिलकर मेरी
यह वीरानियाँ कहीं गुम हो गई है
मैं तन्हाइयों में भी उतना तन्हा नही था
जितना महफ़िलो की रौनक ने
बना दिया था मुझको
ऐ खुदाया ! शुक्र तेरा है मुझ पर
जो तुझ जैसा महबूब दिया है
जिसने चाहा नही है सिर्फ मुझको
सराहा भी है मेरी उदासियों को
उन उदासियों में तुमने प्यार के
रंग भर दिये है अब
हर एक उदासी गंवारा है मुझको
तुम्हारे लिए मैं क्या हूँ नहीं जानता मैं
तुम नैया का मेरी किनारा रही हो......