STORYMIRROR

Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

3  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

औरत हूँ, मशीन नहीं दिन -२ लाल

औरत हूँ, मशीन नहीं दिन -२ लाल

1 min
209

"औरत हूँ, लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि मैं मशीन हूँ जो सुबह से शाम तक बिना रुके चलती रहे। मैं भी एक हाड़ -माँस की जीती जागती इंसान हूँ। मैं भी वही चार रोटी खाती हूँ, जो आप सब खाते हो।"

घर की बहू निकिता की यह बात सुनकर उसकी सास नन्दिताजी और पति अविनाश दोनों भौंचक्के रह गए। उन्होंने संस्कारी, विनम्र,  ममतामयी निकिता से इन शब्दों की कल्पना तक नहीं की थी। अविनाश तो अपनी कामकाजी पत्नी निकिता को यही कहता रहता था कि, "तुम तो सुपरवुमेन हो। मैं तो कभी तुम्हारी जितनी मेहनत कर ही नहीं सकता। नौकरी भी करती हो, दोनों बच्चों को भी सम्हालती हो और उसके बाद हमेशा अपने हाथों का बना हुआ खाना ही खिलाती हो। "

सास नन्दिताजी भी यही कहती कि, "मैं सोचती थी कि कामकाजी लड़की अपना घर अच्छे से नहीं सम्हाल पाएगी, लेकिन तुमने मुझे गलत साबित कर दिया। घर अच्छे से सम्हाल रही हो, इसीलिए तो तुम्हें नौकरी करने दे रहे हैं। "

निकिता भी सुपरवुमेन, अच्छी बहू, परफेक्ट पत्नी, बेस्ट मम्मी आदि तमगों के बोझ तले दबते चली गयी थी। वह अब सबके नज़रों में बुरी नहीं बनना चाहती थी। अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रही थी। सुबह 5 बजे उठकर सभी लोगों क लिए नाश्ता बनाती, बच्चों का टिफ़िन पैक करती, अविनाश का टिफ़िन पैक करती, अविनाश के ऑफिस के लिए कपड़े निकालती, खुद के स्कूल जाने की तैयारी करती। दोनों बच्चों को 7 बजे स्कूल बस में बैठाकर आती। फिर लंच की तैयारी करके बस से स्कूल जाती। स्कूल से शाम को 4 बजे लौटती। आते ही खुद के लिए और सासू माँ के लिए चाय बनाती और फिर कपड़े छत से लाती। दोनों बच्चों को थोड़ी देर पढ़ाती और फिर शाम के खाने की तैयारी में लग जाती। इसी बीच अविनाश आ जाते तो उन्हें चाय और कुछ इवनिंग स्नैक्स बनाकर देती। 

इस सबके साथ ही घर के विभिन्न सामानों और कपड़े आदि की सार सम्हाल करना। घर में तो पचासों काम निकलते रहते थे। जितने ज्यादा गैजेट हॉट हैं, उनकी उतनी ही सार -सम्हाल। घर पर रिश्तेदार और दोस्तों का भी आना -जाना लगा रहता था, उनकी खातिरदारी भी निकिता को ही करनी पड़ती थी। नन्दिताजी भी थोड़ी बहुत सहायता कर देती थी, लेकिन पूरी जिम्मेदारी तो निकिता के सिर पर ही रहती थी। 

स्कूल की नौकरी भी कोई आसान नहीं थी, बच्चों के लिए लेक्चर तैयार करो, उनके लिए टेस्ट पेपर तैयार करो, उनकी कॉपी चेक करो और फिर आये दिन होने वाले अलग-अलग सेलिब्रेशन। 

निकिता ने एक -दो बार अविनाश से कहा भी कि, "अब मैं बहुत ज्यादा थक जाती हूँ। घर और नौकरी दोनों सम्हालना मुश्किल हो रहा है।नौकरी से कुछ समय का ब्रेक लेती हूँ। "

"निकिता, तुम कैसी बातें कर रही हो ? एक बार नौकरी छोड़ने के बाद दुबारा नौकरी मिलना आसान नहीं होता। वैसे भी तुम्हारे वेतन से होम लोन की किश्त जा रही है।बच्चे भी बड़े हो रहे हैं, उनके भी खर्चे बढ़ेंगे। तुम सुपरवुमेन हो, तुम सब कुछ कर लोगी। "

अविनाश की चिकनी -चुपड़ी बातों में आकर निकिता फिर दोनों मोर्चों पर आ डटती। भोली कहें या मूर्ख कहें, निकिता कभी गौर ही नहीं करती कि उसे ही सुपरवुमेन क्यों बनना है ? अविनाश तो कभी भी स्वयं सुपरमैन बनने की बात नहीं करता। सुपरमैन बनने की कोशिश नहीं करता। अच्छी और संस्कारी निकिता कभी कुछ कह ही नहीं पाती थी। 

अगर कभी नन्दिता जी से कहती कि, "मम्मी जी, आज शाम को खिचड़ी बना लूँ ? बहुत थक गयी हूँ। "

"तुम आजकल की लड़कियाँ बड़ी जल्दी थक जाती हो। अब तो सारे काम तो मशीनों से होते हैं। कपड़े वाशिंग मशीन में धो लेती हो। पिसाई के लिए मिक्सी है। हम तो सारे काम हाथ से करते थे, फिर भी नहीं थकते थे। खिचड़ी तो जब हम बीमार हों, तब ही बना देना। मैं तुम्हारी कुछ मदद कर देती हूँ। सब्जी मैं बना देती हूँ और आटा गूँथ देती हूँ।" मम्मीजी की ऐसी बातें उसे इतना शर्मिंदा कर देती कि वह दाल, चावल, चटनी, सलाद, रोटी आदि सब बना डालती। 

मम्मीजी की थोड़ी सी मदद इतनी भारी पड़ती कि सब जगह इसकी खबर पहुँच जाती। कुछ एक रिश्तेदार तो फ़ोन करके उसके हालचाल पूछने लग जाते। 

आज सुबह निकिता बड़ी मुश्किल से बिस्तर से उठ पायी थी। पिछले 2 दिन से बुखार था और काफी कमजोरी आ गयी थी। पेरासिटामोल खा -खा कर गाड़ी चल रही थी। आज बुखार तो नहीं था, लेकिन काफी कमजोरी आ गयी थी। उसने अपने बुखार के लिए घर पर किसी को कुछ बोला नहीं था। बोलती तो सारा दोष तीन दिन पहले खायी आइसक्रीम पर डाल देते। निकिता को आइसक्रीम खाना बहुत पसंद था और अभी मौसम भी कुछ बदला था। 

उसने जैसे -तैसे नाश्ता तैयार किया और बच्चों को अचार -पराँठा रख दिया। अविनाश के भी टिफ़िन में वही रखा। नंदिता जी किसी काम से रसोई में आयी और उन्होंने देखा कि निकिता ने सब्जी नहीं बनाई। 

"निकिता, अभी तक न सब्जी बनाई है और न ही दाल। अविनाश को एक प्रॉपर थाली चाहिए। अविनाश को टिफ़िन में क्या रखोगी?" नन्दिताजी ने किचन में सरसरी नज़र डालते हुए कहा। 

"मम्मी जी, आज कुछ ज्यादा ही कमजोरी महसूस हो रही है। स्कूल की भी छुट्टी दो दिन और बढ़ा दी है। दिन में दाल और सब्जी आप लोगों के लिए बना दूँगी।" निकिता ने कहा। 

"सब्जी और दाल बनाने में वक़्त ही कितन लगता है ? आजकल तुम्हारा काम करने का मन ही नहीं करता। "

"मम्मी जी ऐसा कुछ नहीं है। "

"निकिता, आज अभी तक नाश्ता नहीं लगाया।" अविनाश ने बाहर से आवाज़ लगाते हुए कहा। 

"आज तो खाना भी नहीं बना।" नंदिता जी ने ज़ोर से कहा ताकि अविनाश सुन ले। 

"क्या हुआ निकिता ? दो दिन से तो घर पर आराम ही कर रही हो। खाने का ही तो काम है, बाकी तो शांति दीदी कर ही देती हैं। "

निकिता का गुस्सा आज फूट ही पड़ा। 

"मशीन नहीं हूँ इंसान हूँ। नहीं होता मुझसे इतना काम। आप चाहे मुझे कामचोर कहो तो कहो। मुझे नहीं बनना सुपरवुमेन, मैं एक आम नारी हूँ, जिसकी कुछ सीमाएँ हैं। अपना टिफ़िन आप पैक कर लेना, मैं थोड़ा आराम चाहती हूँ।" निकिता ऐसा कहकर अपने कमरे में जाने लगी। 

"और हाँ आज बच्चों को बस स्टॉप छोड़कर आ जाना।" जाते हुयी निकिता लौट कर आयी और यह शब्द कहकर वापस चली गयी। 

अविनाश और नन्दिताजी एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे कि उनकी प्रशंसा और ताने कहाँ कम रह गए जो आज निकिता को सच समझ आ गया । 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama