आजादी
आजादी
आज मीना सुबह से ही अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पा रही थी। उसके मन में विचारों के गुबार उमड़ घुमड़ कर विद्रोह करने को कह रहे थे। मन कर रहा था उसका कि सारी जंजीरों और बंधनों को तोड़कर स्वच्छंद पंछी बन आजादी के आसमान में उड़ जाए।
तभी पीछे से आवाज आती है, "कहां मर गई बहू"
और अचानक मीना अपने विचारों के द्वंद से बाहर निकली।
“आती हूं माॅंजी, क्या हुआ !!”
पूछ तो ऐसे रही है कि जैसे पता ही ना हो??
“मेरे खाने का समय हो गया है, अभी तक बना क्यों नहीं.?” सास गुस्से से उबलते हुए बोली।
“मांजी आज सुबह से मेरी तबीयत ठीक नहीं है. इसीलिए खाना बनाने का मन नहीं है और क्या मैं आप सभी के हाथ की ‘कठपुतली’ हूं? जब देखो सभी अपने अपने हिसाब से मुझको नचाते रहते हैं.” मीना भी क्रोध से उबलते हुए बोली !!
यह क्या हुआ एक झन्नाटेदार तमाचा गूंज उठा और मीना गश खाकर गिर पड़ी।
और जब होश आया तो मन आजादी के लिए तड़पने लगा और उसने तय कर लिया कि अब वह अपने पांव पर खड़ी होगी। अपना अस्तित्व स्वयं बनाएगी। उसके आत्मसम्मान को अब किसी की कठपुतली बनना स्वीकार ना था।
और वह निकल पड़ी अपने आजाद सफर की ओर...!!!