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Sajida Akram

Abstract

2.8  

Sajida Akram

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सुसराल

सुसराल

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390


आज अर्पणा का सुसराल में दुसरी बिदाई के बाद पहला दिन था । वो अपने माँ-बाबा के द्वारा दिये हुए निर्देश या नैतिक मूल्यों की जो शिक्षा दी थी उस पर चलकर वो सबका मन जितना चाहती थी ।

अभी वो कुछ-कुछ बातें समझने की कोशिश में लगी थी ,सास,ससुर,ननद ,देवर और दादी-दादा ससुर भी थे धीरे-धीरे वो सबका ख़्याल रखने के साथ ही ये कोशिश कर रही थी की सबका सम्मान भी बराबर कर पाऊं ।

अर्पणा की दादी सास बड़ी कडक मिज़ाज की थीं उनकी बहु यानि अर्पणा की सास भी उनसे घबराती थी ,पुराने जमाने की रीति-रीवाज़ों की सख़त पाबंद थी उनकी पूजा-पाठ में किसी तरह का विघ्न नहो ।

एक दिन उसके पति और देवर ने अर्पणा को सताने की प्लानिंग कर ली और दोनों ने अर्पणा को सीख दे दी की दादी जी को तुम गार्डन से सुबह जल्दी उठकर पूजा के लिए फूलों को तोड़कर थाली सजा देना ,अर्पणा बैचारी आज के ज़माने की लड़की थी उसने ज़्यादा सोचा नहीं बिना स्नान किए ही फूलों को तोड़ लाई ,बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी दादी सास के लिए थाली सजा दी दादी जब स्नान कर के आई तो पारा सातवें आसमान पर उन्होंने ने राकेश माँ की विधा को आवाज़ लगाई ,अपनी बहू से पूछा की नई बहुरियाको किसने कहा हमारी पूजा की थाली लगाने को ,दोनों सास बहू घबरा गई ,दादी फोरन समझ गई ये शरारत राकेश और चिंटू की है ....दोनों भाई मज़े लेने के लिए सुबह-सुबह इंतज़ार में थे दादी क्या सज़ा देती हैं अपनी नई बहुरिया..

दादी ने झट से नई बहू को आर्शीवाद दिया और उसके तोड़कर लाए फूलों से पूजा की साथ में शगुन भी दिया।सब हैरान की दादी तो ज़रा-सा नियम नहीं तोड़ती

जब सब नाश्ता करने बैठे तो दादी ने राकेश और चिंटू की क्लास ली तुम दोनों ने ये हरकत की थी न उस भोल-भाली मेरी बहुरिया को डांट पड़वाने की अब उन दोनों भाईयों की हालत देखने लायक थी ..घर के सब लोग ठहाके मार कर हँस रहे थे।

दादी ने कहा हर घर में माँ-बाबा अपने बच्चों को अच्छी सीख देते हैं अपने बड़ो का आदर करन,हर अच्छी बात सीखाते हैं ....



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