एक किस्सा अधूरा सा -1
एक किस्सा अधूरा सा -1
हर्षित और अल्फिया की मुलाकात 25 जून 2006 को मसूरी में हुई थी। हर्षित वहाँ अपने दोस्तों के साथ छुट्टी पर गया था और अल्फिया अपने नाना नानी के घर आई हुई थी। उन दोनों की मुलाक़ात माल रोड के एक बुक कैफ़े में हुई थी। दोनों पढ़ने के शौकीन थे। दोनों एक साथ एक ही किताब लेने लगे। वैसे हर्षित कभी कोई चीज छोड़ता नहीं है पर उस दिन अल्फिया का चेहरा देखकर उसने चुपचाप अपने कदम पीछे ले लिए। वो वापस जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। अल्फिया भी बैठकर किताब पढ़ना लगी। पर हर्षित ज्यादा देर तक खुद को रोक नहीं पाया। पता नहीं वो बैचैनी किताब के लिए थी या अल्फिया के लिए। कुछ देर बाद वो उठा और अल्फिया के पास जाकर बैठ गया। अल्फिया ने किताब से नज़रे उठाकर उसकी और देखा तो उसके लिए जैसे समय वही रुक गया। जब अल्फिया ने चुटकी बजाई तो वो अपने सपनों से बहार निकला और बोला "देखिये मैं इस शहर में सिर्फ आज के लिए हूँ आप ये किताब पहले मुझे पढ़ लेने दीजिए"। अल्फिया बोली "मेरा ही इस शहर में ये आखिरी दिन है इसलिए मैं आपको ये किताब नहीं दे सकती"। ये सुनकर हर्षित उठकर जाने लगा पर फिर वापस मुड़कर बोला "हम क्यों न इस किताब को एक साथ पढ़े"। अल्फिया चाहकर भी हर्षित की उन आंखों को मना नहीं का पायी। उसने हामी में सिर हिला दिया।
अल्फिया ने किताब बीच में रख दी। हर्षित भी बगल वाली कुर्सी पर बैठकर किताब पढ़ने लगा। लेकिन वे दोनों सिर्फ किताब नहीं पढ़ रहे थे बल्कि हर पलटते पन्ने के साथ एक दूसरे को भी पढ़ रहे थे। दोनों का स्वाभाव भी अलग -अलग था। जहाँ एक तरफ हर्षित के चेहरे पर किताब की पूरी कहानी पढ़ी जा सकती थी वही दूसरी और अल्फिया का चेहरा एक कोरे कागज़ सा था। वो बस एकटक किताब को पढ़े जा रही थी।
किताब अब बस खत्म होने ही आई थी। बस आखिरी चेप्टर बचा था। किताब के साथ -साथ दिन भी खत्म होने आए था। हर्षित ने देखा की आस -पास की सब दुकानों में बत्तियाँ जल गयी थी। जब उसने किताब की तरफ गरदन घुमाई तो उसकी नज़र अल्फिया के चेहरे की तरफ गयी। वो आखिरी चैप्टर पढ़ना शुरू कर चुकी थी। हर्षित उसके चेहरे से नज़र हटा ही नहीं पा रहा था। अल्फिया के होठों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। उसकी आँखों से आँसू छलक रहे थे, और गाल लाल हो गए थे। उसके दुप्पटे के किनारे से सरक कर बालों की एक लट उसके चेरे पर आ गिरी थी। वहाँ की रौशनी उसकी खूबसूरती को चार चाँद लगा रही थी। अल्फिया का सारा ध्यान किताब अल्फिया की तरफ था और हर्षित का अल्फिया की तरफ। दोनों ने किताब एक साथ पढ़ कर खत्म की। अल्फिया ने किताब के पन्नों से और हर्षित ने अल्फिया के चेहरे से।

